प्राचीन इतिहास
प्रागैतिहासिक काल को इतिहासकारों नें अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन भागों में बांटा है।

प्रागैतिहासिक काल - प्राक् + इतिहास
प्रागैतिहासिक काल को इतिहासकारों नें अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन भागों में बांटा है।
1. पुरापाषाण काल :-
इस काल के मानव का जीवन पशुतुल्य था।
पाषाण काल के मानव का उदय हिम युग से माना जाता है।
पुरापाषाण काल का मानव नेग्रिटो प्रजाति का था।
पाषाण काल के लोग सूर्य देवता की एंव मातृदेवी की पूजा किया करते थे।
मानव ने सबसे पहले कुल्हाडी (हस्त कुठार) नामक औजार बनाया।
मानव ने सबसे पहले कुत्ते को पालतू पशु बनाया।
पुरापाषाण काल के उत्तरार्द्ध में मानव को अग्नि की जानकारी हो गयी। लेकिन उसे अग्नि के सही प्रयोग की जानकारी नौपाषाण काल में हुयी।
2. मध्यपाषाण काल :-
पुरापाषाण काल की तुलना में मध्य पाषाण काल के मानव के ज्ञान में कुछ वृद्धि हुई और वह पत्थरों के भद्दे (बेडौल) औजार के स्थान पर नुकीले औजार बनाने लगा। जिसे इतिहासकारों ने माइक्रोलिथ का नाम दिया।
पशुपालन का ज्ञान मध्य पाषाण काल में हुआ, इसका साक्ष्य राजस्थान के बागोर और मध्यप्रदेश के आदमगढ़ नामक स्थानों से मिला है।
मानव को पशुओं के सही उपयोग की जानकारी नवपाषाण काल में हुई।
3. नव पाषाण काल/उत्तर पाषाण काल :-
इस काल का मानव पूर्णरूप से सभ्य जीवन व्यतीत करने लगा था।
नव पाषाण काल का सबसे महत्वपूर्ण औजार ब्लेड था जिसका निर्माण चर्ट, जेस्पर और फिलन्ट जैसे बहुमूल्य पत्थरों से किया जाता था।
नव पाषाण काल की सबसे महत्वपूर्ण खोज 1 cm व्यास वाला स्थूल रूप से गोलाकार चबूतरा था। जो मातृ शक्ति के रूप में पूजा जाता था।
इलाहाबाद के पास स्थित कोल्डिहवा एक मात्र नव पाषाणकालीन पुरा स्थल है। जहाँ से चावल का प्राचीनतम साक्ष्य मिला है।
मानव को कृषि का ज्ञान नव पाषाण काल में हुआ। सबसे पहले मानव ने यौ (जौ) का उत्पादन किया। जिसका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में हुआ है।
मानव की स्थायी निवास की प्रवृत्ति नवपाषाण काल में विकसित हुची। इस काल का मानव मिट्टी, और सरकंडे के बने गोलाकार या आयताकार घरों में रहते थे।
पहिये (कुम्हार का चाक) का आविष्कार नव पाषाण काल में हुआ।
इस काल का मानव मृतक व्यक्तियों को दफनाता था। कहीं- कहीं पर उन्हें जलाने की भी प्रथा मिली है।
इस काल को प्रागैतिहासिक और एतिहासिक काल के बीच की कड़ी माना जाता है। इस काल में लिपियाँ लिखी गयी लेकिन उसे पढ़ने में ही विद्वानों को आज तक सफलता नही मिली है।
गैरिक एवं कृष्ण लोहित मृद भाण्ड का सम्बन्ध आद्य ऐतिहासिक काल से है।
मानव जीवन का वह काल जिसके बारे में हमें लिखित सामाग्री प्राप्त है और इन सामग्रियों को हम पढ़ने में सफल रहें हैं। उस काल को ऐतिहासिक काल कहा जाता है।
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत -
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोतों को इतिहास कारों ने मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा है।
पुरातात्विक स्रोत
1. अभिलेख -
पुरातात्विक स्रोतों के अन्तर्गत अभिलेख प्राचीन भारतीय इतिहास जानने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है।
सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 14** ई० पूर्व के आसपास मिला है। इसमें प्राचीन भारतीय ( देवताओं जैसे- इन्द्र, मित्र, वरुण आदि का उल्लेख हुआ है।
प्राचीन भारत में ईरान का शासक दारा प्रथम ने अभिलेन लिखवाने की प्रथा चलायी
अशोक प्रथम भारतीय शासक था, जिसने दारा प्रथम से प्रभावित होकर अभिलेख लिखवाने की प्रथा चलायी। अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिये गये है। जबकि उसके कुछ अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गये हैं। खरोष्ठी लिपि दाँये से बाये की तरफ लिखी जाती है।
अशोक के अधिकतर अभिलेखों का विषय प्रशासनिक था। जबकि रुम्मिन देयी अभिलेख का विषय आर्थिक था।
अशोक के अभिलेखों की संख्या लगभग 14 (चौदह) बतायी गयी है।
प्रयाग प्रसस्ती अभिलेख मे समुद्रगुप्त के विजयों का वर्णन है। इसकी रचना उसके दरबारी कवि हरिषेण ने किया ।
गुप्त काल के अधिकतर अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। गुप्त शासक कुमार गुप्त महिन्द्रादित्य प्रथम ने सर्वाधिक अभिलेख लिखवाये। गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के भितरी, जूनागढ़ अभिलेख से भारत पर हूणों के आक्रमण के विषय में जानकारी मिलती है।
2. मन्दिर - स्मारक - भवन -
उत्तर भारत के मन्दिर नागर शैली में निर्मित हुए हैं और दक्षिण के मन्दिर द्रविड़ शैली में निर्मित हुए हैं।
3. सिक्के -
सिक्के के अध्ययन को मुद्रा शास्त्र कहते हैं। प्राचीनतम सिक्के कांसे, तांबे, चांदी, सोने तथा शीशे से निर्मित किये जाते थे। यवन शासकों ने सबसे पहले भारत में सोनें के सिक्कें तथा लेख वाले सिक्के चलाये।
कुषाण शासकों ने शुद्ध सोने का सिक्का चलाया।
आन्ध्र सातवाहन वंश के शासकों ने शीशे के सिक्के चलाये । गुप्त शासकों ने सर्वाधिक सोने के सिक्के चलाये। गुप्त कालीन सोने के सिक्के को दिनार के नाम से जाना जाता था।
4. मुहरें
खुदाई में प्राप्त मुहरों से प्राचीन मानव के धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है।
साहित्यिक स्रोत -
1. धार्मिक साहित्य-
धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत वेद,आरण्यक ग्रन्थ, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि को सम्मिलित किया गया है।
2. वेद -
वेदों की संख्या चार मानी गयी है। वेदों की रचना 1500 ई० पू० से 600 ई० पू० के मध्य हुयी।
A. ऋग्वेद- ऋग्वेद सर्वाधिक प्राचीन वेद है। इसकी रचना 1500 ई० पू० से 1000 ई० पू० के मध्य मानी गयी है। ऋक का अर्थ होता है, छन्दो एवं चरणों से युक्त मन्त्र ।
ऋग्वेद में कुल ** मण्डल, 1028 सूक्ति तथा 10462 श्लोक (ऋचायें) हैं। ऋग्वेद का पहला व दसवाँ मण्डल सबसे अन्त में जोड़ा गया। ऋगवेद के प्रमुख देवता इन्द्र हैं। जबकि दूसरे प्रमुख देवता अग्नि है।
आयुर्वेद, ऋग्वेद का उपवेद है।
ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय एवं कौशीतिकी है
ऋगवेद में यज्ञों के अवसर पर होत्र नामक पुरोहित मन्त्रों उच्चारण करता था।
B.यजुर्वेद - यजु का अर्थ है यज्ञ। इस वेद में यज्ञों के अवसर पर पढ़े जाने वाले मन्त्रों का उल्लेख है। धनुर्वेद, यजुर्वेद का उपवेद है।
यजुर्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ शतपथ एंव तैत्तरीय है। युजुर्वेद गद्य एंव पद्य दोनों में लिया गया है।
"प्रजापति" युजुर्वेद के प्रमुख देवता हैं। यजुर्वेद में अघवर्यु नामक पुरोहित यज्ञों के अवसर पर मत्रों का उच्चारण करता था।
(c) सामवेद - साम का शाब्दिक अर्थ है 'गान'। इस वेद में यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मन्त्रों का उल्लेख हुआ है। सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा गया है। सामवेद में उद्गाता नामक पुरोहित यज्ञों के अवसर पर मन्त्रों का उच्चारण करता था।
पंचविष सामवेद का ब्राम्हण ग्रन्थ है। गन्धर्व वेद सामवेद का उपवेद है। सामवेद के प्रमुख देवता सूर्य देवता हैं।
(D) अथर्ववेद - इस वेद की रचना अर्थवा ऋषि ने किया। शिल्पवेद अथर्ववेद का उपवेद है। गोपथ अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है। अथर्ववेद में ब्रह्मा नामक पुरोहित यज्ञों के अवसर पर मन्त्रों का प्रधान करता था।
3. व्याकरण ग्रन्थ -
पाणिनीकृत "अष्ठाध्यायी” तथा पतंजलि कृत “महाभाष्य” हमारे दो व्याकरण ग्रन्थ है जो कि संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं।
4. स्मृतियाँ -
मनु स्मृति, पारासर स्मृति, नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति आदि हमारे प्रमुख स्मृति ग्रन्थ हैं। मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति मानी गई है। इसमें आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख हुआ है।
5. उपनिषद-
उप का अर्थ होता है समीप जबकि निषद का अर्थ होता है बैठना अर्थात् गुरू के समीप बैठकर जिसवेद का अध्ययन किया जाता है। उसे उपनिषद कहा गया है।
उपनिषदों की कुल संख्या 108 मानी गयी है। जिनमें से 12 प्रमाणित हैं | भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते, मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।